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ध्वनि की गति को समझने में सक्षम होती है चमगादड -ताजा शोध में किया यह खुलासा

ध्वनि की गति को समझने में सक्षम होती है चमगादड -ताजा शोध में किया यह खुलासा

नई दिल्ली । ताजा शोध के अनुसार चमगादड़ में ध्वनि की ग‎ति की समझ पैदायशी होती है। वे इसके लिए ध्वनि तरंगों का उपयोग करते हैं। अध्ययन में यहां तक साबित किया है कि ऐसा वे जन्म से ही करने में सक्षम होते हैं। तेल अवीव यूनिवर्सिटी के इस ताजा अध्ययन में पहली बार खुलासा हुआ है कि चमगादड़ ध्वनि की गति से जन्म से परिचित होते हैं।यह साबित करने के लिए शोधकर्ताओं ने चमगादड़ों को ऐसे वातावरण में पाला जो हीलीयम समृद्ध था, जहां ध्वनि की गति सामान्य से ज्यादा होती है। उन्होंने पाया कि जहां इंसान दुनिया का नक्शा बनाने के लिए दूरी की इकाइयों का उपयोग करते हैं वहीं चमगादड़ समय की ईकाइयों का उपयोग करते हैं।इसका मतलब यह हुआ कि चमगादड़ के लिए कोई कीड़ा डेढ़ मीटर दूर ना होकर केवल 9 मिली सेकेंड दूर हो सकता है।
जबकि अब तक ऐसा नहीं समझा जाता था। यह तय करने के लिए कि वस्तुएं कहां है, चमगादड़ सोनार  का उपयोग करते हैं।चमगादड़ वस्तु की स्थित का आंकलन समय के आधार पर करते हैं जो ध्वनि तरंगों के निकलने से लेकर ध्वनि तरंगों के वापस आने के लिए लगता है।इसी को सोनार तकनीक कहते हैं जिसका उपयोग इंसान समुद्र में जहाज पानी के अंदर की चीजों की दूरियां नापने और अन्य कामों के लिए करते हैं।यह गणना पूरी तरह से ध्वनि पर निर्भर करती है जो वातावरण के हालात के मुताबिक बदल भी सकती जिसमें हवा की संरचना और तापमान जैसे कारक भूमिका निभाते हैं।मिसाल के तौर पर गर्मी के मौसम में ध्वनि की गति में सर्दियों के मुकाबले 10 प्रतिशत का अंतर आ सकता है जब हवा गर्म होती है और ध्वनि की तरंगे तेजी से फैलती हैं।
सोनार तकनीक की ईजाद के 80 साल पहले हरुई थी।तब से शोधकर्ता यही जानने का प्रयास कर रहे थे कि क्या चमगादड़ इसे समय के साथ सीखते हैं या उनमें यह क्षमता पैदायशी होती है।सागोल स्कूल ऑफ न्यूरो साइंसेस के प्रमुख प्रोफेसर योसी ओवेल की अगुआई में उनके छात्र डॉ एरान एमिचाई और अन्य शोधकर्ताओं ने इस सवाल का जवाब खोज निकाला है। शोधकर्ताओं ने ऐसे प्रयोग किया जिनमें ध्वनि की गति में बदलाव कर सकते थे।उन्होंने हवा की संरचना में हीलियम की मात्रा बढ़ाई और उन हालातों में शिशु चमगादड़ों को पाल कर बड़ा किया और साथ ही व्यस्क चमगादड़ भी उस माहौल में रखीं। उन्होंने पाया कि ना तो शिशु और ना ही व्यस्क चमगादड़ इन हालातों में खुद को ध्वनि की बदली हुई गति के मुताबिक ढाल सके और वे नियमित रूप से लक्ष्य के आगे गिरते रहे जिससे पता चला कि वे लक्ष्य को ज्यादा पास समझ रहे थे।वे ध्वनि की बदली हुई गति के अनुसार अपने बर्ताव को नहीं ढाल सके। 
चूंकि ऐसा सामान्य हालातों में उड़ना सीखने वाले व्यस्क चमगादड़  और ध्वनि की अधिक गति वाले नए वातावरण में पले शिशुओं दोनों के साथ हुआ था, शोधकर्ताओं ने यह निष्कर्ष निकाला कि चमगादड़ों में ध्वनि की गति  का आभास पैदा होने के साथ ही होता है। उनके पास इसकी सतत अनुभूति की क्षमता होती है।प्रोफेसर योवल ने बताया कि चूंकि चमगादड़ों को पैदा होने के बहुत ही कम समय के भीतर उड़ना सीखना होता है, उनकी टीम ने यह नतीजा निकाला कि यह एक उद्भव चुनाव था कि चमगादड़ों में पैदा होती है यह अनुभूति हो जिससे संदवेनशील विकास काल में उनका समय बच सके।इस अध्ययन में एक और रोचक नतीजा यह था कि चमगादड़  अपने लक्ष्य की दूरी को नहीं नापते या उसका अंदाजा नहीं लगाते जैसे कि इंसान करते हैं।वे अपने दिमाग में ध्वनि की गति  के बदलाव को समाहित नहीं पाते हैं। ऐसा ध्वनि द्वारा लिए समय को दूरी नापने के लिए गणना नहीं करते हैं।
 

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