YUV News Logo
YuvNews
Open in the YuvNews app
OPEN

फ़्लैश न्यूज़

इकॉनमी

क्या है आयल बांड, तेल की बढ़ती कीमतों को लेकर मचा सियासी ववाल - सरकार ने तेल कंपनियों को जारी किए आयल बांड हैं जिन्हें ब्याज सहित चुकाना है और उसी कारण कीमतें बढ़ी 

क्या है आयल बांड, तेल की बढ़ती कीमतों को लेकर मचा सियासी ववाल - सरकार ने तेल कंपनियों को जारी किए आयल बांड हैं जिन्हें ब्याज सहित चुकाना है और उसी कारण कीमतें बढ़ी 

मुंबई । देश में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में तेजी से लोग परेशान हैं। कहीं कीमतें 100 रुपये प्रति लीटर के पार हो गई हैं तो कहीं 100 के पास पहुंच गई हैं। इससे सियासी बवाल भी हो गया है। एक तरफ सरकार का कहना है कि कीमतों में वृद्धि उन आयल बांड की वजह से हुई है जो पिछली सरकार ने खरीदे थे और जिनके भुगतान का समय निकट है। तो वहीं विपक्ष ने पटलवार करते हुए कहा है कि सरकार मूल्यवृद्धि से जितना कमा रही है उतना चुका ही नहीं रही है। इस मामले को जानने के लिए यह समझना जरूरी है कि ये आयल बांड हैं क्या। दरअसल पेट्रोल-डीजल की कीमतों में वृद्धि कोविड-19 के कारण लगे लॉकडाउन से बढ़ रही है। इस दौर में अंतरराष्ट्रीय मूल्यों में भी तेजी देखने को मिली थी, लेकिन उसके बाद से कीमतें सामान्य होने पर भी देश में पैट्रोल की कीमतें अमूमन बढ़ ही रही हैं। अप्रैल के महीने में तेल की कीमतों में वृद्धि देखने को नहीं मिली तो मई के महीने में 16 बार बढ़ी और जून में यह सिलसिला और तेज होगा। अप्रैल की तुलना में अब तक आठ रुपये से भी ज्यादा बढ़ोत्तरी देखने को मिल चुकी है। पेट्रोल-डीजल की कीमतों में वृद्धि पर बवाल 100 रुपये के आंकड़े के पार करने पर तेज हो गया।
केंद्र सरकार का कहना है कि पेट्रोल डीजल की कीमतों में वृद्धि की वजह साल 2014 में यूपीए सरकार द्वारा तेल कंपनियों को जारी किए आयल बांड हैं जिन्हें ब्याज सहित चुकाना है और उसी के कारण कीमतें बढ़ी हैं। इसके लिए बीजेपी ने साल 2008 और 2012 में तत्कालीन प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह का बयान भी सोशल मीडिया पर शेयर किया था जिसमें उन्होंने कहा था कि पैसे पेड़ पर नहीं ऊगते। 2018 में किए गए ट्वीट का  कांग्रेस ने भी जवाब देते हे एक ट्वीट में लिखा कि पिछले 7 सालों में 22 लाख करोड़ रुपये कमाई हुई है जबकि ऑयल बांड पर केवल 3500 करोड़ रुपये ही चुकाए गए हैं। भारत में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में सरकार बहुत सब्सिडी देती है। तेल की कीमतों पर राजनीति भी खूब होती रहती है। वैसे इस सबसिडी को कम करने की कोशिशे काफी समय से होने लगी हैं और कीमतें बाजार की कीमतों से कुछ हद तक निर्धारित भी होने लगी हैं। कीमतों को नियंत्रित करने के लिए सरकारें पहले भी आयल बांड जारी करती रही हैं।सरकार इन बांड का सहारा तब लेती हैं जब वे खतरे में होती हैं यानि उनका राजकोषीय घाटा अप्रत्याशित कारणों से बहुत बढ़ जाता है। उनकी आमदनी कम और खर्चा अचानक अधिक हो जाता है।
 

Related Posts