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सांस लेने में बदलाव से होते हैं मस्तिष्क में भी बदलाव -शोधकर्ताओं ने किया यह बडा दावा

सांस लेने में बदलाव से होते हैं मस्तिष्क में भी बदलाव -शोधकर्ताओं ने किया यह बडा दावा

अमेरिका के नॉर्थ शोर यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल में डॉक्टर जोश हेरैरो और डॉ आशीष मेहता का कहना है कि सांस लेने के तरीके में किसी भी तरह का बदलाव मस्तिष्क की तंत्रिकाओं में भी बदलाव लाता है। ये दोनों ही डाक्टर शोध के बाद इस नतीजे पर पहुंचे कि इस दौरान मस्तिष्क का भीतर से अध्ययन किया जा सका। इससे पहले जितने भी शोध थे, वे सारे इमेजिंग तकनीक पर आधारित थे। इसके तहत सबसे पहले मरीजों को देखा गया, जब वे सामान्य अवस्था में थे और अपने पेस पर सांस ले रहे थे। इस दौरान मशीनों के जरिए उनके मस्तिष्क में बदलाव को देखा गया। बाद में उन्हें अलग-अलग टास्क दिए गए। जैसे कि मरीजों को कंप्यूटर स्क्रीन को देखना था और जैसे ही स्क्रीन पर सर्कल उभरे, उन्हें एक बटन क्लिक करना था। इस एक्टिविटी में मरीजों को अपनी सांस पर फोकस नहीं करना था लेकिन तब भी किसी एक्टिविटी में लगा होने की वजह से उनकी सांस की गति बदल रही थी। तीसरी एक्टिविटी के तहत मरीजों को तेजी से सांस लेनी थी और उसे गिनना था। इस दौरान मस्तिष्क में बड़ी तेजी से बदलाव आया। ऑटोमेटिक और इंटेशनल तरीके से सांस लेने के दौरान मस्तिष्क के अलग-अलग हिस्से में अलग-अलग तरह के बदलाव देखे गए।ये पाया गया कि किसी भी तरह के तनाव में अगर तेजी से सांस ली जाती है तो मस्तिष्क में एक तरह का हॉर्मोन निकलता है जो एकाग्रता बढ़ाने में मदद करता है। खासकर ऐसे प्रोफेशन में, जहां शारीरिक और मानसिक दोनों ही तरह का स्ट्रेस होता है, वहां हर आधे घंटे में रुककर 5 मिनट के लिए गहरी सांस लेना तनाव काफी मददगार होता है। इससे पहले जो भी न्यूरोसाइंस स्टडी हुई हैं, उनमें मस्तिष्क की संरचना में बदलाव को देखने के लिए इमेजिंग तकनीक की मदद ली जाती रही थी, लेकिन इस स्टडी में इलेक्ट्रोड के जरिए सीधे-सीधे मस्तिष्क में बदलाव को देखा गया। शोध में शामिल मरीज वो थे, जो इपिलेप्सी के इलाज के लिए भर्ती थे और क्लिनिकल ट्रीटमेंट के लिए जिनके मस्तिष्क में पहले ही इलेक्ट्रोड इंप्लांट किए हुए थे। बेहद गंभीर रूप से बीमार इन मरीजों पर दवाएं बेअसर हो चुकी थीं और ये सर्जिकल प्रक्रिया का इंतजार कर रहे थे।  इससे पहले स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी और कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में भी इसी तरह के शोध हुए थे, जिसमें 175 ब्रेन सेल्स  को देखा गया जो सांसों में बदलाव पर प्रतिक्रिया करते हैं। ये सेल्स हमारे किसी भी भाव या फिर एक्टिविटी को लेकर खासे संवेदनशील होते हैं और उन्हें थकान से भरी गहरी सांस, जम्हाई लेने, सोने, घूंट भरने, हंसने और रोने की पहचान होती है। इस शोध में पाया गया कि गहरी लंबी सांस लेने पर गंभीर रूप से बीमार इन मरीजों के मस्तिष्क का हर हिस्सा सक्रिय हो जाता है और इससे इलाज में भी काफी मदद मिलती है।

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