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अनुच्छेद 370- सुप्रीम कोर्ट ने फारूक अब्दुल्ला की नजरबंदी और कश्मीर की स्थिति पर 2 हफ्तें में तलब की रिपोर्ट

अनुच्छेद 370- सुप्रीम कोर्ट ने फारूक अब्दुल्ला की नजरबंदी और कश्मीर की स्थिति पर 2 हफ्तें में तलब की रिपोर्ट

अनुच्छेद 370- सुप्रीम कोर्ट ने फारूक अब्दुल्ला की नजरबंदी और कश्मीर की स्थिति पर 2 हफ्तें में तलब की रिपोर्ट -कोर्ट ने एजी से पूछा, घाटी में इंटरनेट और फोन अभी तक काम क्यों नहीं कर रहे 
नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधान हटाने के केंद्र सरकार के निर्णय के विरुद्ध देश के सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल की गई याचिका पर आज सुनवाई चल रही है। सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता और सांसद फारूक अब्दुल्ला की नजरबंदी के खिलाफ दाखिल याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस भेजा। कश्मीर के हालात पर केंद्र को 2 सप्ताह में विस्तृत रिपोर्ट देने का भी निर्देश सुप्रीम कोर्ट ने दिया। तमिलनाडु के नेता और एमडीएमके के संस्थापक वाइको की याचिका पर सर्वोच्च अदालत ने केंद्र को 30 सितंबर तक जवाब दाखिल करने का आदेश दिया। वाइको के वकील ने कोर्ट में कहा कि फारूक अब्दुल्ला की नजरबंदी पर केंद्र सरकार अलग-अलग तर्क दे रही है।
केंद्र सरकार की ओर से कहा गया कि पब्लिक सेफ्टी ऐक्ट के तहत नेशनल कॉन्फ्रेंस नेता को नजरबंद किया गया है। इसके तहत 2 साल तक किसी शख्स को बिना सुनवाई के हिरासत में रखा जा सकता है। कोर्ट ने 2 सप्ताह में कश्मीर के हालात पर विस्तृत रिपोर्ट देने का निर्देश केंद्र सरकार को दिया। अटॉर्नी जनरल से सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि किस कारण से आपने कहा कि कश्मीर में समाचार पत्र प्रकाशित हो रहे हैं? कोर्ट ने एजी से यह भी पूछा कि कश्मीर घाटी में इंटरनेट और फोन अभी तक काम क्यों नहीं कर रहे हैं। घाटी में कम्युनिकेशन को क्यों बंद किया गया है? इसके बाद चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एस.ए. बोबड़े और जस्टिस एस. अब्दुल नजीर ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह 2 सप्ताह में कश्मीर के हालात पर विस्तृत रिपोर्ट सौंपे। अटॉर्नी जनरल ने कहा कि कश्मीर में आतंकियों के लिए बड़े पैनामे पर पाकिस्तान के हाई कमीशन की ओर से फंडिंग हो रही है। कश्मीर में अशांति फैलाने और पत्थरबाजों को समर्थन देने का काम हो रहा है। अटॉर्नी जनरल ने यह भी कहा कि 2016 में बुरहान वानी की मौत के बाद राज्य सरकार ने 3 महीने के लिए इंटरनेट और फोन सुविधाओं को बंद कर दिया गया था। एजी ने कहा कि मौजूदा हालात में इंटरनेट और फोन बंद करने का फैसला राष्ट्रीय सुरक्षा को ध्यान में रखकर किया गया है। सुप्रीम कोर्ट में सीपीआई नेता सीताराम येचुरी की भी याचिका पर सुनवाई हुई। सीपीएम नेता एमवी तारीगामी की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह कश्मीर यात्रा के लिए स्वतंत्र हैं। कोर्ट ने कहा कि इस याचिका पर अलग से कोई आदेश नहीं दिया जाएगा। जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को खत्म किए जाने को चुनौती देने समेत इससे जुड़ी करीब 8 याचिकाओं पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई है। इन याचिकाओं में अनुच्छेद 370 खत्म करने, जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन की वैधता और वहां लगाई गई पाबंदियों को चुनौती दी गई है। इन्हीं में एक याचिका कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद की भी है, जिसमें उन्होंने अपने गृह राज्य जाने की इजाजत मांगी है। इन याचिकाओं की सुनवाई चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस एस. ए. बोबडे और एस. अब्दुल नजीर की बेंच कर रही है। जम्मू और कश्मीर पीपल्स कॉन्फ्रेंस (जेकेपीसी) पार्टी के प्रमुख सज्जाद लोन ने आर्टिकल 370 के प्रावधानों को खत्म करने और राज्य के पुनर्गठन की वैधता को चुनौती दी है। इसके अलावा बाल अधिकार कार्यकर्ता इनाक्षी गांगुली और प्रोफेसर शांता सिन्हा ने भी विशेष दर्जा खत्म करने के बाद जम्मू-कश्मीर में कथित रूप से बच्चों को गैरकानूनी रूप से कैद करने के खिलाफ एक याचिका दायर की है। सीजेआई ने कहा, मामला गंभीर मैं खुद दौरा करूंगा - अनुच्छेद 370 से संबंधित एक याचिका की सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस ने महत्वपूर्ण टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि प्रदेश में लोग हाईकोर्ट में अपील नहीं कर पा रहे हैं तो यह गंभीर मामला है। चीफ जस्टिस ने कहा कि वह खुद हाईकोर्ट के जज से फोन पर बात करेंगे और संतुष्ट नहीं हुए तो निजी तौर पर प्रदेश का दौरा करेंगे। बाल अधिकार कार्यकर्ता इनाक्षी गांगुली ने जम्मू-कश्मीर में जेल में बंद 18 साल से कम उम्र के बच्चों की गिरफ्तारी का मुद्दा उठाया। उन्होंने संबंधित उन केसों की जानकारी मांगी जिन्हें हाईकोर्ट कमेटी देख रही है। चीफ जस्टिस ने कहा कि इसके लिए जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट में अपील करें। इनाक्षी की ओर से वरिष्ठ वकील हुसेफा अहमदी ने कहा, 'ऐसा करना बेहद मुश्किल है। हाईकोर्ट आम आदमी की पहुंच से दूर है।'
याचिकाकर्ता के वकील की इस टिप्पणी पर चीफ जस्टिस ने कहा कि यह बेहद गंभीर है अगर लोग हाईकोर्ट में अपनी अपील नहीं कर पा रहे हैं। चीफ जस्टिस ने जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से रिपोर्ट मांगी। इसमें उन्होंने पूछा कि क्या हाईकोर्ट अपीलकर्ताओं की पहुंच में है या नहीं? चीफ जस्टिस ने कहा, 'यह बेहद गंभीर मामला है। मैं खुद निजी तौर पर फोन पर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से बात करूंगा। जरूरत पड़ी तो प्रदेश का दौरा भी करूंगा।' हालांकि, सीजेआई ने याचिकाकर्ता को चेतावनी भी दी और कहा कि अगर आपका दावा गलत निकला तो इसका परिणाम भी आपको भुगतना होगा।

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