
पिछली जेब में पर्स रखने से रीढ़ की हड्डी पर पड़ता दुष्प्रभाव
नई दिल्ली। पिछली जेब में पर्स रखना नुकसानदायक माना जाता है। क्योंकि पर्स हमारे शरीर को कई तरह से नुकसान पहुंचा सकता है। इसके बारे में सोसायटी फॉर अल्जाइमर एंड एजिंग रिसर्च के जनरल सेक्रेटरी धिकव ने बताया कि पिछली जेब में रखा हुआ भारी-भरकम पर्स हिप ज्वाइंट और कमर के निचले हिस्से में दर्द पैदा करता है। बताया जाता है कि कूल्हे में एक नस होती है, जिसे साइटिका कहते हैं। जब पिछली जेब में पर्स रखकर हम ज्यादा देर तक बैठते हैं, तो यह दब जाती है। इसके दबने से हिप ज्वाइंट और कमर के निचले हिस्से में दर्द शुरू होता है, जो बढ़ते-बढ़ते पंजे तक पहुंच जाता है। जिससे सुन्न हो जाना या पैर का सो जाना कहते हैं। लेकिन साइंस की भाषा में इसे शूटिंग पेन कहा जाता है। उन्होंने बताया कि जब रोजाना इस तरह का दर्द होने लगे तो इसे पिरिफोर्मिस सिंड्रोम कहा जाता है। पर्स रखे होने के वजह से रीढ़ की हड्डी पर और ज्यादा दबाव पड़ता है। सीधे बैठने के बजाय कमर के निचले हिस्से में इंद्रधनुष जैसा आकार बन जाता है। बताया गया कि पर्स जितना ज्यादा मोटा होगा, शरीर उतना ज्यादा एक तरफ झुकेगा और उतना ही ज्यादा दर्द होगा। जिससे रीढ़ की हड्डी में टेढ़ापन आ सकता है और यदि रीढ़ की हड्डी में पहले से कोई दिक्कत है तो परेशानी बढ़ सकती है। इस तरह की सबसे ज्यादा समस्या कोचिंग स्टूडेंट्स को होती है, क्योंकि वह पिछली जेब में पर्स डालकर 8-8 घंटे तक क्लासेज में बैठे रहते हैं। उन्होंने बताया कि हमारे पास इस तरह के एक महीने में कम से कम 20 से 25 मरीज आते हैं। कॉलेज स्टूडेंट्स में इसे लेकर ज्यादा खतरा नहीं होता और वह इसलिए, क्योंकि वह ज्यादातर समय क्लास के बाहर ही बिताते हैं। वह ज्यादा देर तक बैठते नहीं हैं, जबकि उनकी तुलना में कोचिंग स्टूडेंट्स कई घंटे तक बैठे रहते हैं। इनके अलावा डॉ. आरएन ने बताया कि यह परेशानी नौजवानों, ओवर वेट और लंबे समय तक बैठने वालों में पाई जा रही है। हालांकि, सही इलाज लेने से यह समस्या ठीक हो जाती है।