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 नवीन तकनीक से पश्चिम रेलवे ने बचाए 70 करोड़, कार्बन उत्सर्जन भी कम हुआ

 नवीन तकनीक से पश्चिम रेलवे ने बचाए 70 करोड़, कार्बन उत्सर्जन भी कम हुआ

 नवीन तकनीक से पश्चिम रेलवे ने बचाए 70 करोड़, कार्बन उत्सर्जन भी कम हुआ
 पश्चिम रेलवे ने बीते पांच साल में 70 करोड़ रुपये बचाने में कामयाबी हासिल की हैं और कार्बन उत्सर्जन 37,055 मीट्रिक टन प्रति कैपिटल कम किया है। ये सब एक नवीन तकनीक के उपयोग से संभव हो सका। पश्चिम रेलवे ने 2015 में एंड ऑन जनरेशन रेक्स को हेडॉन जनरेशन (एचओजी) सिस्टम में बदलने का फैसला किया। इसके लिए पश्चिम रेलवे ने 60 स्पेशल वैप- 7 लोकोमोटिव लगाए जो पैंटॉग्राफ से कोच में बिजली पहुंचाते हैं। बता दें कि एंड ऑन जनरेशन रेक्स में डीजल जनरेशन सेट होते हैं जिनसे बिजली के सहारे बिजली, पंखे और एसी चलते हैं जबकि एचओजी में ओवरहेड लाइन से ही कोच में बिजली जाती है। इस वित्तीय वर्ष में पश्चिम रेलवे ने 26 रेकों में इलेक्ट्रिक सर्किट बदले हैं। एचओजी रेक के इस्तेमाल से डीजी सेट की जरूरत नहीं पड़ती जिससे वायु और ध्वनि प्रदूषण कम होता है। हाई स्पीड डीजल खपत भी कम होती है। बता दें कि सबसे पहले पश्चिम रेलवे के मुंबई सेंट्रल डिविजन में नवंबर 2015 में एचओजी में शिफ्ट का काम शुरू हुआ था। तब मुंबई-नई दिल्ली राजधानी एक्सप्रेस की पहली रेक बदली गई थी। उसके बाद से एचओजी रेक में बदलने का काम तेजी से किया गया। इस साल सारी रेक्स को कन्वर्ट कराने की दिशा में काफी मेहनत की गई। नतीजतन अक्टूबर 2019 तक 18.15 करोड़ रुपये बचाए जा चुके हैं 2015 से अब तक 70 करोड़ रुपये बचाए जा चुके हैं। पावर कार में लगे ऑपरेटिंग डीजी सेट्स से बनने वाली ऊर्जा के बदले ओवरहेड तारों से ऊर्जा उत्पादन करने की वजह से पैसों की बचत हो सकी है। यही नहीं, 1.38 करोड़ लीटर तक डीजल की खपत में कमी के कारण कार्बन उत्सर्जन में भी गिरावट आई है। 

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